- Kanika Chauhan
पौष्टिक गुण से भरे पपीते की खेती देगी लाभ
पपीता शीघ्र ही तैयार होने वाला बहुत ही उपयोगी फल है इसमें बहुत ही पौष्टिक गुण पाए जाते है हमारे देश में पपीते गृह वाटिका में उगाना प्रचलित है इसकी पैदावार शीतकटिबन्धीय क्षेत्रों को छोड़कर पूरे देश में की जाती है लेकिन अब इसकी खेती व्यवसायक रूप में की जाती है। यह स्वस्थ के लिए बहुत ही लाभदायक होता है इसमें पपेन पपीते एवं पैक्टिन नामक पदार्थ पाया जाता है। पपेन का दवाइयों में प्रयोग किया जाता है पपेन पपीते के कच्चे फलों से निकल दाता है। इसे एक बार लगा देने पर दो फसल ली जाती है इसकी कुल आयु पौने तीन साल होती है।
पपीते की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और भूमि
पपीते की अच्छी व अनुकूल खेती गर्म नमी युक्त जलवायु में की जा सकती है। इसे अधिकतम 38 डिग्री सेल्सियस 44 डिग्री सेल्सियस तक तापमान होने पर उगाया जा सकता है। न्यूनतम 5 डिग्री सेल्सियस से कम नहीं होना चाहिए। लू तथा पाले से पपीते को बहुत नुकसान होता है। इनसे बचने के लिए खेत के उत्तरी पश्चिम में हवा रोधक वृक्ष लगाना चाहिए। पाला पड़ने की आशंका हो तो रात्रि के अंतिम पहर में धुंआ करने के साथ ही सिंचाई भी करते रहना चाहिए।
पपीते की खेती के लिए ऐसी जमीन होनी चाहिए जो उपजाऊ होने के साथ-साथ जिसमें जल निकास अच्छा हो सकें जिससे पपीते की खेती उत्तम होती है। जिस खेत में पानी भरा हो उस खेत में पपीता कदापि नहीं लगाना चाहिए क्योंकि पानी भरे रहने से पौधे में कॉलर रॉट बिमारी लगने की सम्भावना रहती है। अधिक गहरी मिट्टी में भी पपीते की खेती नहीं करनी चाहिए।
भूमि की तैयारी
पपीते की खेती के लिए खेत को अच्छी तरह जोत कर समतल बना लेना चाहिए तथा भूमि का हल्का ढाल उत्तम है। 2 X 2 मीटर के अन्दर पर लम्बा, चौड़ा, गहरा गढ्ढा बनाना चाहिए, इन गढ्ढों में 20 किलो गोबर की खाद, 500 ग्राम सुपर फास्फेट एवं 250 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश को मिट्टी में मिलाकर पौधा लगाने के कम से कम 10 दिन पूर्व भर देना चाहिए।
किस्म
पपीते की खेती के लिए पूसा मेजस्टी एवं पूसा जाइंट, हनीड्यू, कुंर्गहनीड्यू, पूसा ड्वार्फ, पूसा डेलीसियस, सिलोन, पूसा नन्हा, वाशिंगटन, सोलो, कोयम्बटूर, आदि प्रमुख किस्में है।
बीज
पपीते की खेती में एक हैक्टेयर के लिए 500 ग्राम से एक किलो बीज की आवश्यकता होती है, पपीते के पौधे बीज द्वारा तैयार किये जाते है, एक हैक्टेयर खेती में प्रति गढ्ढे 2 पौधे लगाने पर 5 हजार पौध संख्या लगती है।
पपीते की पौधे लगाने का समय एवं तरीका
पपीते के पौधे पहले रोपणी में तैयार किये जाते है, पौधे पहले से तैयार किये गए गढ्ढे में जून, जुलाई में लगाए जाते हैं, जंहा सिंचाई का समूचित प्रबंध हो वंहा सितम्बर से अक्टूबर तथा फरवरी से मार्च तक पपीते के पौधे लगाई जा सकती है।
नर्सरी में रोपा तैयार करना
इस विधि द्वारा बीज पहले भूमि की सतह से 15 से 20 सेमी. उंची क्यारियों में कतार से कतार की दूरी 10 सेमी, तथा बीज की दूरी 3 से 4 सेमी. रखते हुए लगाते है। बीज को 1 से 3 सेमी. से अधिक गहराई पर नहीं बोना चाहिए, जब पौधे करीब 20 से 25 सेमी. उंचे हो जाएं तब प्रति गढ्ढा 2 पौधे लगाना चाहिए।
पौधे पॉलीथिन की थैली में तैयार करने की विधि
20 सेमी. चौड़े मुंह वाली, 25 सेमी. लम्बी तथा 150 सेमी. छेद वाले पॉलीथिन थैलियां ले और इन थैलियों में गोबर की खाद, मिट्टी एवं रेत का समिश्रण करना चाहिए, थैली के ऊपर का 1 सेमी. भाग नहीं भरना चाहिए, प्रति थैली 2 से 3 बीज होने चाहिए, मिट्टी में हमेशा पर्याप्त नमी रखनी चाहिए, जब पौधे 15 से 20 सेमी. उंचे हो जाएं तब थैलियों के नीचे से धारदार ब्लेड द्वारा सावधानी पूर्वक काट कर तैयार किये गये गढ्ढों में लगाना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक
एक पौधे को वर्षभर में 250 ग्राम नाईट्रोजन, 250 ग्राम स्फुर एवं 500 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। इसे छ: बराबर भाग में बांट कर प्रति 2 माह के अंतर से खाद तथा उर्वरक देना चाहिए। खाद तथा उर्वरक को मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करनी चाहिए। इस मिश्रण को नर पौधों और ऐसे पौधो को नहीं देना चाहिए, जिसे 4 से 6 माह बाद निकालकर फेंकना है।
नर पौधों को अलग करना
पपीते के पौधे 90 से 100 दिन के अन्दर फूलने लगते है तथा नर फूल छोटे-छोटे गुच्छों में लम्बे डंढल युक्त होते है। नर पौधों पर पुष्प 1 से 1.3 मी. के लम्बे तने पर झूलते हुए तथा छोटे होते है। प्रति 100 मादा पौधों के लिए 5 से 10 नर पौधे छोड़ कर शेष नर पौधों को उखाड़ देना चाहिए। मादा पुष्प पीले रंग के 2.5 से.मी. लम्बे तथा तने के नजदीक होते हैं।
निंदाई, गुडाई तथा सिंचाई
पपीते की खेती के लिए गर्मी में 4 से 7 दिन तथा ठण्ड में 10 से 15 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए। पाले की चेतावनी पर तुरंत सिंचाई करें, तीसरी सिंचाई के बाद निंदाई गुडाई करनी चाहिए। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जडों तथा तने को नुकसान न हो।
फलों को तोड़ना
पौधे लगाने के 9 से 10 माह बाद फल तोड़ने लायक हो जाते है। फलों का रंग गहरा हरे रंग से बदलकर हल्का पीला होने लगता है तथा फलों पर नाखुन लगने से दूध की जगह पानी तथा तरल निकलता हो तो समझना चाहिए कि फल पक गया है। फलों को सावधानी से तोड़ना चाहिए। छोटी अवस्था में फलों की छटाई अवश्य करनी चाहिए।
पौध संरक्षण
माइट, एफीड्स तथा फल मक्खी जैसे कीटों का प्रकोप इन पर देखा गया है। इसके नियंत्रण को मेटासिस्टाक्स 1 लीटर दवा प्रति हैक्टेयर की दर से तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतर से करना चाहिए। फूट एण्ड स्टेम राट बीमारी से पौधों को बचाने के लिए तने के पास पानी न जमने दें। जिस भाग में रोग लगा हो वहां चाकू से खुरच कर बोडो पेस्ट भर देना चाहिए। पावडरी मिलड्यू के नियंत्रण के लिए सल्फर डस्ट 30 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करना चाहिए।
उपज तथा आर्थिक लाभ
पपीते का खेती में प्रति हैक्टेयर पपीते का उत्पादन 35-40 टन होता है। यदि 1500 रू./ टन भी कीमत आंकी जाएं तो किसानों को प्रति हैक्टेयर 34000 रू. का शुद्ध लाभ प्राप्त होगा।